पाचन तंत्र (Digestive System)
मनुष्य में पाचन ‘मुख’ से प्रारम्भ हाकेर ‘गुदुदा’ (Anus) तक होता है। इसके निम्नलिखित भाग हैं-
(i) मुख
(ii) ग्रसनी (Oesophagous)
(iii) आमाशय (Stomach)
(jv) छोटी आँत (Small Intestine)
(v) बड़ी आँत (Large Intestine)
(vi) मलाशय(Rectum)
(1) मुख –
इसमें लार ग्रन्थि (Saliva Gland) से लार निकलकर भोजन से मिलकर भोजन को अम्लीय रूप प्रदान करती हैं तथा लार में पायी जाने वाली एनजाइम- (Amylase) अथवा टायलिन मडं (Starch) को आंशिक रूप से पचाने का कार्य करते हैं। मुख में गरम भोजन का स्वाद बढ़ जाता है, क्योंकि जीभ का पृष्ठ क्षेत्र बढ़ जाता है। मुख में पाया जाने वाला एक एन्जाइम- ‘लाइसोजाइम’ बैक्टीरिया को मारने का कार्य करता है। भोजन मुख से आगे के पाचन तन्त्र में क्रमाकुंचन गति से बढ़ता है।
(2) ग्रसनी –
इस भाग में कोई पाचन-क्रिया नहीं होती यह सिर्फ मुख और आमाशय का कार्य करती है।
(3) आमाशय –
आमाशय में भोजन का पाचन अम्लीय माध्यम में होता है। मनुष्य के आमाशय में जठर ग्रन्थियाँ पायी जाती हैं जो जठर रस का स्रावण करती हैं। जठर रस के रासायनिक सगंठन में सर्वाधिक मात्रा में जल पाया जाता है। इसके अतिरिक्त भ्ब्स तथा विभिन्न प्रकार के एन्जाइम पाये जाते हैं। आमाशय में निम्न एन्जाइम पाये जाते हैं जिनके कार्य इस
प्रकार है
(a) पेप्सिन एन्जाइम : इसके द्वारा प्रोटिन का पाचन होता है
(b) रेनिन एन्जाइम : इसके द्वारा दूध में पायी जाने वाली केसीन प्रोटीन का पाचन होता है।
(c) लाइपजे एन्जाइम : इसके द्वारा वसा का पाचन होता है
(d) एमाइलजे ़एन्जाइम : इसके द्वारा मण्ड का पाचन होता है।
(4) छटी आँत –
छाटी आँत में भोजन का पाचन क्षारीय माध्यम में होता है आतींय रस का चभ् मान 8.0 से 8.3 होता है। छोटी आँत को आहार नाल का सबसे लम्बा भाग माना जाता है। जिसकी लम्बाई लगभग 6 से 7 मीटर होती है। कार्य तथा संरचना के आधार पर छोटी आँत के तीन भाग होते है छोटी आँत के ग्रहणी भाग में भोजन के पाचन में पित्तरस और अगन्याशिक रस सहायक होते है। पित्त रस का निर्माण यकृत में और अगन्याशिक रस का निर्माण अगन्याशय में होता है।
यकृत (Liver):
यकृत मनुष्य के शरीर की सबसे बड़ी बाह्य स्रावी ग्रन्थी होती है। भार के आधार पर यकृत को शरीर को सबसे बडा़ अगं माना जाता है जिसका भार लगभग 1500 ग्राम होता है। लम्बाई के आधार पर शरीर का सबसे बड़ा अंग त्वचा को माना जाता है मनुष्य में एक यकृत पाया जाता है जो दो पिण्डों में विभाजित होता है जिसमें दाएँ पिण्ड में नीचे की ओर एक थैलीनुमा संरचना पायी जाती है जिसे पित्ताशय कहते हैं पित्ताशय (Gall Bladder) में पित्त रस का सचंयन होता है जबकि पित्तरस का निर्माण यकृत में होता है कुछ स्तनधारी प्राणियो में पित्ताशय नही पाया जाता है
(5) बड़ी़ आँँत –
इस भाग में बचे भोजन का तथा शेष 90ःजल का अवशोषण होता है।बड़ी आँत की लम्बाई 1 से 1.5 मीटर होती है जहाँ परभोजन का पाचन नहीं होता है। कार्य तथा संरचना के आधार बड़ी आँत के तीन भाग होते
हैं जिन्हें क्रमशः अन्धनाल, कोलोन तथा मलाशय कहा जाता है।
(6) मलाशय –
इस भाग में अवशिष्ट भाजे न का सग्रहण होताहै। यहीं से समय-समय पर बाहर निष्क्रमण होता है।
Note: सेलुलोज का पाचन हमारे शरीर में नहीं होता है। सेलुलोज का पाचन ‘सीकम’ (Ceacum) में होता है ‘सीकम’ शाकाहरी जन्तुओं में पाया जाता है मनुष्य में सीकम’ निष्क्रिय अग के रूप में बचा है। अन्धनाल (Ceacum) से जुड़ी नलिका का संरचना को कृमि रूप परिशेषिका (Vermiform Appendix) कहा जाता है जो मनुष्य में एक अवशेषी संरचना होती है अर्थात वर्तमान समय में मनुष्य के शरीर में इस संरचना का कोई कार्य नहीं है। शाकाहारी जन्तुओं में कृमि रूप परिशेषिका सेलुलोज़ के पाचन में सहायता करती है। मांसाहारी जन्तुओं में ये संरचना नहीं पायी जाती है।
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